Monday, November 30, 2020

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'मौजूदा कानूनों में 'लव जिहाद' शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है। किसी भी केंद्रीय एजेंसी द्वारा 'लव जिहाद' का कोई मामला सूचित नहीं किया गया है।' ये जवाब है गृह राज्यमंत्री जी किशन रेड्डी का, जो उन्होंने इस साल 4 फरवरी को केरल में लव जिहाद के मामले को लेकर पूछे गए सवाल पर दिया था।

इसका जिक्र इसलिए, क्योंकि कानून में 'लव जिहाद' नाम का कोई शब्द है ही नहीं, फिर भी आजकल इसकी चर्चा हर तरफ हो रही है। मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश तो बाकायदा अध्यादेश लेकर आ गए हैं। हालांकि, वो अध्यादेश शादी के लिए जबरन धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए लाया गया है। लेकिन, इसे लव जिहाद के खिलाफ ही माना जा रहा है। अब जब इस पर इतनी बहस शुरू हो ही गई है, तो ये जानना जरूरी है कि हमारे देश के कितने राज्यों में जबरन धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए कानून है? क्या दूसरे देशों में भी ऐसे कानून हैं? और क्या ऐसा कानून बना पाना वाकई संभव है।

सबसे पहले बात आजादी से पहले की
आजादी से पहले ब्रिटिश इंडिया के समय जबरन धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए कोई कानून नहीं था। लेकिन, उस समय भी देश की चार रियासतों राजगढ़, पटना, सरगुजा और उदयपुर में इसको लेकर कानून थे। सबसे पहले 1936 में राजगढ़ में ऐसा कानून बना। उसके बाद 1942 में पटना, 1945 में सरगुजा और 1946 में उदयपुर में कानून बना। इन कानूनों का मकसद हिंदुओं को ईसाइयों में बदलने से रोकना था।

आजादी के बाद जबरन धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए क्या हुआ?

  • आजादी के बाद जबरन धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए पहली बार 1954 में लोकसभा में 'भारतीय धर्मांतरण विनियमन एवं पंजीकरण विधेयक' लाया गया। लेकिन, ये पास नहीं हुआ। इसके बाद 1960 और 1979 में भी बिल तो आए, लेकिन बहुमत के अभाव में पास नहीं हो सके।
  • इसके बाद 10 मई 1995 को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस कुलदीप सिंह और जस्टिस आरएम सहाय की बेंच ने सरला मुदगल बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में धर्म के दुरुपयोग को रोकने के लिए धर्म परिवर्तन पर कानून बनाने की संभावनाएं तलाशने के लिए एक कमिटी बनाने का सुझाव दिया था।
  • ऐसा सुझाव इसलिए, क्योंकि उस समय हिंदू पुरुष एक से ज्यादा शादी करने के लिए इस्लाम धर्म कबूल कर रहे थे। जबकि, हिंदू मैरिज एक्ट में प्रावधान है कि जब तक पहली पत्नी जीवित हो और तलाक न दिया हो, तब तक दूसरी शादी नहीं हो सकती।

तो क्या जबरन धर्म परिवर्तन रोकने के लिए कोई कानून नहीं है?
सीनियर एडवोकेट उज्जवल निकम बताते हैं कि हमारे संविधान में जबरन धर्म को रोकने के लिए कोई कानून नहीं है। हमारे संविधान में कोई भी अपनी मर्जी से अपना धर्म बदल सकता है। हालांकि, कानून ये भी कहता है कि किसी के इच्छा के खिलाफ और किसी को डरा-धमकाकर उसका धर्म परिवर्तन करना गुनाह है।

क्या धर्म परिवर्तन रोकने के लिए राज्य सरकारें कानून बना सकती हैं।

  • इस बार उज्जवल निकम कहते हैं कि राज्यों के पास अपने कानून बनाने का अधिकार होता है। हालांकि, विधानसभा में पास होने के बाद राष्ट्रपति के साइन होने जरूरी हैं। राष्ट्रपति के साइन के बाद ही कानून बनते हैं।
  • इन कानूनों को क्या सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती मिल सकती है? इस सवाल के जवाब में निकम कहते हैं, हां बिल्कुल। राष्ट्रपति के साइन के बाद भी इन कानूनों की वैलिडिटी को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है।

कौन-कौन से राज्य जबरन धर्म परिवर्तन या कथित लव जिहाद को रोकने के लिए कानून ला रहे हैं?

  • मध्य प्रदेश में शिवराज सरकार कथित लव जिहाद को रोकने के लिए कानून ला रही है। इसका अध्यादेश लाया जा चुका है। गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा का कहना है कि दिसंबर में विधानसभा में इसे पास करवा लिया जाएगा। हालांकि, मध्य प्रदेश के पास 1968 से ही कानून था, लेकिन वो इतना सख्त नहीं था। इसलिए इस कानून के बदले सरकार नया कानून ला रही है।
  • मध्य प्रदेश के अलावा उत्तर प्रदेश की योगी सरकार भी इसके लिए कानून ला रही है। इसका अध्यादेश कैबिनेट में पास हो चुका है। इस कानून में जबरन धर्म परिवर्तन करने पर 10 साल तक की सजा का प्रावधान है। एमपी, यूपी के अलावा कर्नाटक, हरियाणा, असम में भी कथित लव जिहाद को रोकने के लिए कानून लाने की बात हो रही है।

क्या अभी भी किसी राज्य में जबरन धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए कानून हैं?
हां, अभी देश के 9 राज्यों में जबरन धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए सख्त कानून हैं। पहले तमिलनाडु में भी इसके लिए कानून था, लेकिन 2003 में इसे निरस्त कर दिया गया।

क्या दूसरे देशों में भी इसे रोकने के लिए कानून बने हैं?
हां, भारत के पड़ोसी देशों में भी जबरन धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए कानून हैं। नेपाल, म्यांमार, भूटान, श्रीलंका और पाकिस्तान में ऐसे कानून हैं। पाकिस्तान में सबसे ज्यादा धर्म परिवर्तन के मामले सामने आते हैं, लेकिन यहां जबरन धर्म परिवर्तन कराने पर उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान है। यहां मुस्लिम समुदाय इस कानून को निरस्त करने की मांग करता रहता है।



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