बिहार राज्य धार्मिक न्यास बोर्ड ने शुक्रवार को पटना हाईकोर्ट को बताया कि गया के विख्यात विष्णुपद मंदिर की बदहाली के लिए वहां के गयावाल पंडे और उनकी लालची करतूत जिम्मेदार है। इस पर कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी की, कहा- विष्णुपद मंदिर किसी वर्ग विशेष का कैसे हो सकता है? मंदिर व उसकी संपत्ति पर दावा करने वाले गयावाल पंडा समाज ध्यान रखें कि उनकी हैसियत जनता की इच्छा से बढ़कर नहीं है।
कोर्ट ने गया की निचली अदालत को निर्देश दिया कि मंदिर व उसकी संपत्ति सार्वजनिक है या नहीं, इस मामले पर सुनवाई में तेजी लाए। वहां इस मसले पर सुनवाई चल रही है।
हाईकोर्ट ने नाराजगी जाहिर की
हाईकोर्ट ने मंदिर की बदहाली पर दायर पीआईएल को सुनते हुए गयावाल पंडा समुदाय के दावों पर नाराजगी जाहिर की। चीफ जस्टिस संजय करोल और जस्टिस एस. कुमार की बेंच ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए गौरव सिंह की याचिका को सुना। साथ ही सख्त लहजे में यह सवाल उठाया कि लाखों तीर्थयात्री व सैलानियों को आकर्षित करने वाला विष्णुपद मंदर कैसे किसी वर्ग विशेष (गयावाल पंडा समुदाय) के आधिपत्य व कब्जे में रह सकता है?
याचिकाकर्ता के वकील ने आरोप लगाया कि न्यास बोर्ड और सरकार के कई प्रयास के बावजूद विष्णुपद क्षेत्र का विकास नहीं हो सका है। यह क्षेत्र केवल वहां के पंडों के वर्चस्व की लड़ाई में बदहाल होता जा रहा है।
पूरा मंदिर और संपत्ति, बोर्ड में बतौर सार्वजनिक न्यास कह कर रजिस्टर्ड
धार्मिक न्यास बोर्ड ने जवाबी हलफनामे में स्पष्ट कहा कि पूरा मंदिर व संपत्ति, बोर्ड में बतौर सार्वजनिक न्यास कह कर रजिस्टर्ड है। शुरू से बोर्ड मंदिर व उसकी संपत्ति का उचित प्रबंधन करने का प्रयास कर रहा है।
इस सिलसिले में वहां के पंडा वर्ग से कानूनी लड़ाई भी लड़ी गई। 1977 में पंडा समाज के खिलाफ फैसला आया। लेकिन उसके बाद एक टाइटल सूट दायर हुआ, जिसमें बोर्ड का पक्ष सुने बिना ही पंडा समाज के पक्ष में एकतरफा फैसला हुआ। उस फैसले के खिलाफ बोर्ड ने अपील दायर की है, जो अभी गया के जिला अदालत में लंबित है।
लड़ाई वहीं लड़ेंगे और फिर जीतेंगे
विष्णुपद प्रबंधकारिणी समिति के महेश गुपुत ने कहा कि न्यास बोर्ड ने जो हलफनामा दायर किया है, ये उनकी बातें है। कोर्ट की लड़ाई कोर्ट में ही लड़ेंगे। पहले भी ऐसे मामले उठे थे, जिसे हमने जीता है। कोर्ट में बुलाया जाएगा तो सारे धर्मग्रंथों के साथ जाएंगे।
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