Tuesday, June 30, 2020

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कश्मीर घाटी पिछले 11 महीने से डबल लॉकडाउन झेल रही है। पिछले साल अगस्त में धारा 370 हटाने के ठीक पहले यहां एहतियातन लॉकडाउन लगा दिया गया था। सर्दियों में महीने भर के लिए लॉकडाउन खुला भी तो मार्च में कोरोना के कारण फिर से लॉकडाउन लगाना पड़ा।

इन 11 महीनों में कश्मीर घाटी ने पिछले तीन दशक मेंसबसे बड़ा आर्थिक नुकसान झेला है। सुरक्षा के चलते लगने वाले लॉकडाउन में कश्मीरियों ने खुद को हालातके मुताबिक ढाल लिया था। उसका आर्थिक स्थिति पर ज्यादा असर नहीं पड़ा। लेकिन, इस बार मार सीधे जेब पर पड़ी है।

पर्यटन, हॉर्टिकल्चर, पश्मिना-हैंडीक्राफ्ट और ड्राय फ्रूट की बदौलत कश्मीर को आमदनी हासिल होती है। टूरिस्ट सीजन भी शुरू हो चुका है। लेकिन, कोरोना के चलते पर्यटकों से कश्मीर आने की उम्मीद नहीं की जा सकती। इस साल पश्मीना बुनाई का काम बंद है, केसर पर भी कोरोना का असर हुआ है।सेब और अखरोट को लॉकडाउन से ज्यादा मौसम से नुकसान हुआ है।

डल लेक पर 900 से अधिक हाउस बोट बने हैं। लॉकडाउन के कारण सभी पूरी तरह से खाली पड़े हैं।

डबल लॉकडाउन में 36 हजार करोड़ का घाटा

द कश्मीर चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज ने डबल लॉकडाउन का एनालिसिस दो फेज में किया है। अगस्त से लेकर दिसंबर तक 120 दिन घाटी में एक दर्जन से ज्यादा सेक्टर में करीब 18 हजार करोड़ का नुकसान हुआ है। यानी हर दिन करीब 120 करोड़ का घाटा कश्मीर के कारोबार को हुआ है। यही नहीं पांच लाख लोगों ने इस दौरान नौकरी भी गंवाई हैं।

कश्मीर चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज के शेख अहमद के मुताबिक इस साल जनवरी से लेकर जून तक करीब 18 हजार करोड़ रुपए का नुकसान और हुआ है। यानी डबल लॉकडाउन में करीब 36 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा नुकसान कश्मीर घाटी में टूरिज्म, हॉर्टिकल्चर, टांसपोर्ट, हैंडीक्राफ्ट, एजुकेशन समेत एक दर्जन सेक्टर को हुआ है।

अहमद कहते हैं, कारोना के कारणकश्मीर के ट्रेड पर भी असर पड़ेगा। ऐसे हालात का सामना शायद पहली बार घाटी झेल रही है। यहां पर्यटन बढ़ने और दूसरे प्रदेशों में लॉकडाउन की बंदिशें कम होने से ही स्थिति सामान्य हो सकती है।लेकिन, इसमें कम से कम पांच साल तो लग ही जाएंगे।

इस समय डल लेक सूनी है, शिकारे भी नहीं चल रहे हैं, क्योंकि यहां पर्यटक ही नहीं आ रहे हैं।

परिवार चलाने के लिए 500 शिकारा वालों ने अपनी बोट बेच दी
ऑल जे एंड के टैक्सी शिकाराएसोसिएशन के प्रेसिडेंट वली मोहम्मद के मुताबिक डल झील में अभी 4880 शिकारा और 910 हाउस बोट हैं। पिछले 11 महीने में यहां मुश्किल से 20 दिन ही शिकारे चल पाए हैं। यही वजह है कि 500 शिकारा वालों ने अपनी बोट बेच दी।

उनके लिए मेंटेंनेंस का खर्च भी निकालना मुश्किल हो रहा था। एक शिकारा की कीमत करीब तीन लाख रुपए तक होती है।लेकिन, मजबूरी के चलते उसे 50 से 80 हजार रुपए में बेच दिया। टूरिस्ट सीजन में जब पर्यटक आते हैं तो एक शिकारे से तीन लाख रुपए तक कमाई हो जाती है। लेकिन, इस बार 20 हजार रुपए भी नहीं हो पाई।

कई शिकारे वाले ऐसे भी हैं जिन्होंने शिकारा तो नहीं बेचालेकिन अपनी पत्नी के जेवर बेच दिए। यही हाल हाउस बोट वालों का है। एक अच्छे सीजन में उनकी कमाई भी 6लाख रुपए तक हो जाती थी। लेकिन, इस बार 50 हजार रुपए से भी कम है। एक बोट हाउस के मेंटेनेंस का खर्च 70 हजार रुपए से ज्यादा आता है।

लॉकडाउन के कारण मंडी में फलों और सब्जियों की डिमांड कम हो गई है।

सेब का उत्पादन कमहुआ, बाग बेचने की तैयारी में किसान

दिल्ली कीआजाद मंडी के बादश्रीनगर की पारिम्पोरामंडी का नाम एशिया में दूसरे पायदान पर आता है। यहां के न्यू कश्मीर फ्रूट एसोसिएशन के अध्यक्ष मोहम्मद यासीन बट ने बताया कि कश्मीर में प्लम, डबल चेरी और सेब की पैदावार होती है। लेकिन, इस बार तीनों में ही बहुत घाटा हुआ है। डबल चेरी की पैदावार तीन लाख किलो होती थी।

मुंबई, बैंगलोर और तमिलनाडु में इसकी डिमांड सबसे ज्यादा थी। लॉकडाउन के चलते इस बार चेरी की डिमांड कम है। हर साल 25 टन चेरी मुंबई जाती थी। लेकिन, इस बार सिर्फ पांच टन चेरी की डिमांड आई। चेरी से अलग-अलग प्रोडक्ट्स बनाने वाली श्रीनगर में दो दर्जन से ज्यादा कंपनियां हैं। लेकिन, डबल लॉकडाउन के चलते यहां सिर्फ तीन फैक्ट्रियांखुली हैं। जिसमेंसिर्फ 25 फीसदीवर्कर ही काम कर रहे हैं।

जम्मू- कश्मीर में धीरे-धीरे मंडियां खुल रही हैं लेकिन अभी ग्राहक ज्यादा नहीं पहुंच रहे हैं।

नवंबर में ओलागिरनेऔर गलत दवाओं के इस्तेमाल के कारण सेब की करीब 40% फसल खराब हो गई। 10 जुलाई से सेब मंडी में आने शुरूहो जाते हैं। इस बार लोगों को 30 से 40 फीसदी महंगा सेब मिलने की आशंका है। सेब किसानों की फसल इस कदर खराब हुई कि वो बाग बेचना चाहते हैं। लेकिन, उन्हें खरीददार नहीं मिल रहे हैं। पहले मंडी में 270 ट्रेडर हुआ करते थे। अभी करीब 120 ट्रेडर के पास कोई काम ही नहीं बचा है।

इस साल नई पश्मीना शॉल नहीं बुनी जाएंगी, पुरानी ही बेचेंगे
कश्मीरी फैंसी क्राफ्ट्स के सेक्रेटरी मुश्ताक अहमद बट ने बताया कि इस साल नई पश्मीना शॉल, फिरन, पुंचू का काम नहीं होगा। जो पुराना माल होगा वही बेचेंगे। 11 महीने से यहां लॉकडाउन है, इस कारण कई लोगो के पास पुराना माल भी नहीं बिकाहोगा। बडगाम, श्रीनगर, गांदरबल इन्हें बनाने का काम होता है।लगातार लॉकडाउन से कच्चा माल खरीदने के लिए कारिगरों के पास पैसे नहीं बचे है और अगर कोई खरीद भी लेता है तो वह उसे बेचने बाहर नहीं जा सकेगा।

यह शॉल बनाने वाली फैक्ट्री श्रीनगर के गाेजवारा इलाके में है। इस समय में यहां पश्मीना शॉल व गर्म कपड़े बनने का शुरु हो जाता था, लेकिन इस बार काम पूरी तरह से बंद है।

कश्मीरी केसर की फसल अच्छी, लेकिन ईरानी केसर ने कारोबार खत्म किया

जाफरान एसोसिएशन के प्रेसिडेंट अब्दुल मजीद कहते हैं इस बार सही समय पर बरसात होने से केसर की फसल अच्छी होने की उम्मीद है। पिछले साल 17 टन केसर हुआ था। जिसकी कीमत 250 करोड़ रुपए से ज्यादा थी। इस सीजन में 20 टन से ज्यादा केसर हो सकता है। इसलिए उम्मीद है कि 300 करोड़रुपए से ज्यादा का कारोबार हो सकता है।
ईरान और अमेरिका के तनाव के चलते ईरानी केसर सस्ते में भारत के बाजार में पहुंचा है। इस केसर को कश्मीरी केसर बोलकर बेचा जा रहा है। एक किलो ईरानी केसर की कीमत करीब 50 रुपए होती है। वहीं एक किलो कश्मीरी केसर की कीमत डेढ़ से दो लाख रुपए होती है। गुणवत्ता के लिहाज से कश्मीरी केसर ईरान वाले से कहीं ज्यादा अच्छा होता है।



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पिछले 11 महीने के दौरान जम्मू-कश्मीर को डबल लॉकडाउन का सामना करना पड़ा है। पहला अगस्त 2019 में आर्टिकल 370 हटाने के बाद और दूसरा कोरोना के कारण इस साल लगाना पड़ा।


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नेशनल अनलॉक की प्रक्रिया में 1 जुलाई से उत्तराखंड के चारधाम बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमनोत्री मंदिरराज्य के आम दर्शनार्थियों के लिए खुल जाएंगे। उत्तराखंड चारधाम देवस्थानमप्रबंधन बोर्ड ने 29 जून को इस संबंध में आदेश जारी कर दिया है, लेकिन कोरोना वायरस की वजह से मंदिर समितियां और पुजारी अभी दर्शन शुरू करने के पक्ष में नहीं हैं।

इस संबंध में हमने बद्रीनाथ के रावल ईश्वरप्रसाद नंबूदरी, धर्माधिकारी भुवनचंद्र उनियाल, केदारनाथ के तीर्थ पुरोहित विनोद प्रसाद शुक्ला, गंगोत्री मंदिर समिति अध्यक्ष सुरेश सेमवाल, यमनोत्री मंदिर समिति सचिव कृतेश्वर उनियाल से बात की है।

देवस्थानम बोर्ड के मीडिया प्रभारी डॉ. हरीश गौड़ ने बताया कि चारधाम दर्शन के लिए आने वाले लोगों को बोर्ड की वेबसाइट https://ift.tt/31RZQAk पर रजिस्ट्रेशन कराना होगा। इसके बाद ही मंदिरों में दर्शन करने की अनुमति मिलेगी। भक्तों को अपने साथ ई-पास और फोटो आईडी अनिवार्य रूप से रखना होगा। इनके आधार पर जिला पुलिस धाम क्षेत्र में प्रवेश की अनुमति देगी।

अन्य राज्य के लोगों को, क्वारैंटाइन किए गए, कंटेंमेंट और बफर झोन से आने वाले लोगों को मंदिर में प्रवेश नहीं दिया जाएगा। यहां आने वाले भक्तों को मंदिर क्षेत्र में रुकने के लिए एक दिन की अनुमति मिलेगी। विशेष परिस्थितियों में ये समय बढ़ भी सकता है। इन मंदिरों के आसपास स्थित धर्मशालाएं, होटल्स, रेस्टोरेंट, ढाबे, गेस्ट हाउस से संबंधित लोगों के लिए मरम्मत आदि कार्य करने की अनुमति रहेगी।

श्रद्धालुओं के लिए जरूरी है नियमों का पालन करना

चारधाम की यात्रा पर आने वाले श्रद्धालुओं को मास्क पहनना होगा, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना होगा। 65 साल से अधिक उम्र वाले लोग और 10 साल से छोटे बच्चों को दर्शन करने की अनुमति नहीं मिलेगी। जिन लोगों में महामारी से संबंधित कोई भी लक्षण होंगे, उन्हें प्रवेश नहीं दिया जाएगा। भगवान को प्रसाद, हार-फूल चढ़ाना वर्जित रहेगा। दूर से ही भगवान के दर्शन कराना होंगे।

मंदिर के पुजारी और समितियां दर्शन यात्रा शुरू करने के पक्ष में नहीं

उत्तराखंड सरकार 1 जुलाई से इन मंदिरों में दर्शन व्यवस्था शुरू कर रही है, लेकिन इन मंदिरों के पुजारी और समितियां कोरोना वायरस की वजह से अभी दर्शन शुरू करने के पक्ष में नहीं हैं।

बद्रीनाथ के रावल ईश्वरप्रसाद नंबूदरी का कहना है कि अभी देशभर में कोरोना वायरस तेजी से फैल रहा है। ऐसी स्थिति में यात्रा करना स्वास्थ्य की दृष्टि से सही नहीं है। बाहर के लोग यहां आएंगे तो इस क्षेत्र में महामारी फैल सकती है। अभी भगवान भी यही चाहते हैं कि सभी भक्त अपने-अपने घर पर ही रहें और घर में ही पूजा-पाठ करें। इसी में सभी का हित है। जब तक महामारी का प्रकोप कम न हो जाए, तब तक सभी को सावधानी रखनी चाहिए। बद्रीनाथ क्षेत्र के लोग भी यही चाहते हैं कि अभी दर्शन शुरू नहीं होना चाहिए।

बद्रीनाथ के धर्माधिकारी भुवनचंद्र उनियाल ने बताया कि अभी यहां उच्च स्तर की स्वास्थ्य संबंधी व्यवस्थाएं उपलब्ध नहीं है। अभी क्षेत्र में सुविधाओं का अभाव है। शासन को भक्तों के लिए यहां रहने, खाने और ठहरने की व्यवस्था पर ध्यान देना चाहिए।

केदारनाथ के तीर्थ पुरोहित विनोद प्रसाद शुक्ला इस समय यात्रा शुरू करने के पक्ष में नहीं हैं। उन्होंने बताया कि केदारनाथ क्षेत्र में सभी होटल्स, धर्मशालाएं अभी बंद हैं। ऐसे में यहां आने वाले लोगों को रहने-खाने की दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। बाहरी लोग यहां आएंगे तो यहां भी कोरोना वायरस फैल सकता है। इसीलिए हम इस समय यात्रा शुरू करने का विरोध कर रहे हैं।

गंगोत्री मंदिर समिति अध्यक्ष सुरेश सेमवाल के मुताबिक, हम अभी बाहरी लोगों के लिए दर्शन शुरू करना नहीं चाहते हैं। अगर इस क्षेत्र में महामारी बढ़ जाती है, यहां के लोगों के लिए परेशानियां काफी बढ़ जाएंगी।
यमनोत्री मंदिर समिति के सचिव कृतेश्व उनियाल कहते हैं कि यमनोत्री क्षेत्र में सभी होटल्स, रेस्टोरेंट बंद हैं। महामारी को देखते हुए शासन को यहां जरूरी व्यवस्थाओं पर ध्यान देना चाहिए। अभी यात्रा शुरू होती है तो स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां बढ़ सकती हैं।


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कोरोना से मौत का खतरा डॉक्टरों से दोगुना फैक्ट्री के मजदूरों और सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी कर रहे लोगों को है। यह आंकड़ा ब्रिटेन के विशेषज्ञों ने अलग-अलग क्षेत्र में काम कर रहे 4700 कोविड-19 के मरीजों के डेटाका एनालिसिस करने के बाद जारी किया है। रिपोर्ट में 9 मार्च से 25 मई के बीच 20 से 64 साल के कोरोना पीड़ितों को शामिल किया था।

रिसर्च में सामने आया कि एक लाख लोगों पर 74 पुरुष सिक्योरिटी गार्ड और 73 फैक्ट्री वर्कर की कोरोना से मौत हुई।

1 लाख लोगों पर 30 स्वास्थ्यकर्मियों की मौत हुई

वहीं, स्वास्थ्य कर्मियों में यही आंकड़ा अलग रहा है। इनमें 1 लाख लोगों पर 30 स्वास्थ्यकर्मियों की मौत हुई। विशेषज्ञों के मुताबिक, एम्बुलेंस स्टाफ में संक्रमण का खतरा 82.4 फीसदी रहा, जो सबसे ज्यादा था। हालांकि, हमारा मकसद यह बताना नहीं है कि डॉक्टरी पेशे के मुकाबले ये नौकरियांखतरनाक हैं बल्कि, लोगों को सावधान रखना है।

गार्ड और मजदूर सबसे ज्यादा सम्पर्क में आए
विशेषज्ञों के मुताबिक, लॉकडाउन के दौरान भी फैक्ट्री वर्करों ने लगातार काम किया। जब कोरोना के मामले तेजी से फैल रहे थे तो वो लोगों के सम्पर्क में भी आए। वहीं, सुपर मार्केट में तैनात सिक्योरिटी गार्ड्स लाइन में लगे कस्टमर को सोशल डिस्टेंसिंग से बचाते हुए सैकड़ों लोगों सम्पर्क में आए।

सबसे अधिक खतरा अश्वेत-एशियाई लोगों को

विशेषज्ञों के मुताबिक, पुरुषों के लिए 17 अलग-अलग क्षेत्रों में मौत का खतरा अधिक रहा। इनमें टैक्सी ड्राइवर (65.3), शेफ (56.8), बस एंड कोच ड्राइवर्स (44.2), सेल्स-रिटेलअसिस्टेंट (34.2) शामिल हैं। जबकि ब्रिटेन में कोविड-19 मौत की दर 19.1 रही है। कोविड-19 से मौत के आंकड़े 1 लाख आबादी के आधार पर है।इनमें भी सबसे अधिक खतरा अश्वेत और एशियाई मूल के लोगों को है।

महिलाओंमें मौत का सर्वाधिक खतरा ग्रूमिंग इंडस्ट्री से
विशेषज्ञों के मुताबिक, महिलाओं में मौत का सबसे अधिक खतरा ग्रूमिंग इंडस्ट्री में काम करने वालीमहिलाओं को है। इनमें एक लाख में 31 महिलाओं की मौत हुई। हेल्थ एनालिस्ट बेन हम्बरस्टोन के मुताबिक, सिर्फ किसी क्षेत्र में मौत का खतरा अंतिम नतीजा नहीं है, इसके लिए यह भी निर्भर करता है कि आप किसउम्र औरकिस मूल के हैं।



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सुशांत सिंह राजपूत के निधन के बाद ज़ी अनमोल चैनल एक बार फिर उनके सबसे ज्यादा पसंद किए जाने वाले टीवी शो को दर्शकों के सामने ला रहा है। चैनल उन्हें श्रद्धांजलिदेते हुए उनके सबसे पॉपुलर शोज में से एक ‘पवित्र रिश्ता‘ का पुनः प्रसारण करने जा रहा है। ये वही शो है, जिसने उन्हें घर-घर में जाना पहचाना नाम बना दिया था।

सुशांत ने इस शो में मानव देशमुख का रोल निभाया था, जिसके लिए इस एक्टर को खास तौर पर याद किया जाता है। ऐसे समय पर जब सारा देश उन्हें याद कर रहा है और लोग इस बेहतरीन कलाकार की सर्वश्रेष्ठ परफॉर्मेंस देखना चाहते हैं, तब चैनल ने दर्शकों को इस शो से दोबारा जोड़ने का प्रयास किया है।

पवित्र रिश्ता' में दो लोगों की एक खूबसूरत प्रेम कहानी बताई गई थी

'पवित्र रिश्ता' का पुनः प्रसारण इस एक्टर को एक भावभीनी श्रद्धांजलि होगी, जिसमें उनका टैलेंट देखकर सभी की पुरानी यादें ताजा हो जाएंगी। 'पवित्र रिश्ता' में मध्यमवर्गीय परिवारों के दो लोगों की एक खूबसूरत प्रेम कहानी बताई गई थी। जहां मानव देशमुख एक आम गैराज मैकेनिक और अपने परिवार का अकेला कमाने वाले व्यक्ति है, वहीं अर्चना करंजकर (अंकिता लोखंडे) एक सीधी-सादी मिडिल क्लास लड़की है, जो अपने परिवार को सबसे ऊपर रखती है।

मुश्किलों के बीच मानव और अर्चना की शादी हो जाती है

तमाम मुश्किलों के बीच मानव और अर्चना की शादी हो जाती है, लेकिन शादी के बाद उन्हें नए संघर्षों का सामना करना पड़ता है। जिंदगी से उनका प्रेरणादायी संघर्ष और एक-दूसरे के प्रति उनका अटूट प्यार दर्शाता यह शो असल में इन दोनों के बीच रिश्ते की पवित्रता दिखाता है। सुशांत सिंह राजपूत और अंकिता लोखंडे ने इस शो में मानव और अर्चना का रोल निभाया था और उनके साथ सविता प्रभुने, पराग त्यागी और उषा नाडकर्णी जैसे कलाकार भी सपोर्टिंग रोल्स में थे।



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शो 'पवित्र रिश्ता' में सुशांत सिंह राजपूत के साथ अंकिता लोखंडे।


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चीनी युद्ध का माहौल क्यों बना रहे हैं? लद्दाख में फौज इकट्‌ठी क्यों कर रहे हैं? वे भारत से क्या चाहते हैं? भारत इस सबका कैसे जवाब दे? इनके जवाब के लिए करीब 20 साल पीछे चलें और देखें कि भारत, पाकिस्तान से कैसे निपट रहा था। और याद करें कि भारत ने किस रणनीतिक दांव की खोज की थी, जिसे ‘बलप्रयोग की कूटनीति’ कहा गया था।

शायद जसवंत सिंह या दिवंगत ब्रजेश मिश्र में से किसी एक ने दिसंबर 2001 में भारतीय संसद पर हमले के बाद भारत की ओर से शुरू किए गए ‘ऑपरेशन पराक्रम’ के बारे में बताने के लिए इसका प्रयोग किया था। इसके तहत भारत ने सीमाओं पर सैनिकों, भारी फौजी साजो-सामान का ऐसा जमावड़ा किया था, मानो अब जंग होने ही वाली हो।

ऐसा ही कुछ आज लद्दाख में एलएसी के उस पार पूरब में होता लग रहा है। चीनी लद्दाख में जमीन के टुकड़े के लिए तो खतरा नहीं मोल ले रहे होंगे। न ही यह ‘सीपीईसी’ को कबूल करवाने या अक्साई चीन के औपचारिक विलय के लिए ही हो सकता है। यह तो कुछ बड़ी ही महत्वाकांक्षा होगी, जो पूरी होने से रही। तब चीन आखिर क्या हासिल करना चाहता है?

भारत बेशक पाकिस्तान नहीं है। कभी नहीं हो सकता। लेकिन हम यहां केवल जंग का खेल खेल रहे हैं। आप कह सकते हैं कि पाकिस्तान आतंकवाद को अपनी सरकारी नीति बनाने से बाज आए, यह गारंटी हासिल करने के लिए भारत ने ‘ग्रीनलैंड’, ‘यलो लैंड’ या किसी और ‘लैंड’ पर दावा किया होगा।

वह गारंटी भारत को संसद पर हमले के एक महीने के अंदर मिल गई थी, जब परवेज़ मुशर्रफ ने अपने भाषण में इसका वादा किया था। बल्कि उन्होंने तो पाकिस्तान में मौजूद दाऊद इब्राहीम समेत उन 24 आतंकवादियों की सूची को भी कबूल किया था और वादा किया था कि वे उनकी खोज करवा के भारत को सौंप देंगे ‘क्योंकि ऐसा नहीं है कि हमने उन्हें अपने यहां पनाह दे रखी है’।

लेकिन भारत और ठोस चीज़ की मांग कर रहा था, इसलिए जंग जैसा जमावड़ा कायम रहा। हालात तब बेकाबू होते दिखे जब आतंकवादियों ने जम्मू की कालुचक छावनी में भारतीय सैनिकों के परिवारों पर हमला किया। लेकिन संयम बना रहा, कुछ तो इसलिए कि पाकिस्तान पर विदेशी दबाव बना और ज्यादा इसलिए कि भारत ने कभी युद्ध छेड़ने का इरादा नहीं किया था।

उस दौरान मैंने जसवंत सिंह, ब्रजेश मिश्र और अटल बिहारी वाजपेयी से पूछा था कि क्या इस तरह की चाल से टकराव बेकाबू होने का खतरा नहीं है? मिश्र का जवाब था कि ‘बल प्रयोग की कूटनीति’ कारगर हो इसके लिए जरूरी है कि दबाव इतना असली दिखे कि कभी-कभी खुद हमें जंग का खतरा दिखने लगे। यह मजबूत देश की दबाव की चाल थी।

आज जब आप एलएसी के पार पूरब की ओर देखते हैं, तब क्या ऐसा ही कुछ आभास नहीं होता? भारत की उस चाल के बाद कई सालों तक अमन-चैन रहा। लेकिन हमें यह भी देखना होगा कि दोनों पक्षों ने क्या सही किया और क्या नहीं किया। भारत ने वास्तविक फौजी जमावड़े की शुरुआत तो शानदार की मगर वह यह गुर भूल गया कि जीत का ऐलान कब करना है।

यह ऐलान उसी दिन कर सकते थे जब मुशर्रफ ने वह भाषण दिया था। पाकिस्तान ने इस खेल में बहुत जल्दी ही हार कबूल करके गलती की। अगर भारत ने तब अपनी जीत की घोषणा करके जमावड़ा हटा लिया होता तो उसे लगभग उतना ही फायदा होता जितना अंततः हुआ, लेकिन बेहिसाब खर्च, तनाव और अनिश्चितता से बच सकते थे।

इसके अलावा ‘बल प्रयोग की कूटनीति’ की स्पष्ट कामयाबी दिखती। लेकिन हमारी अपेक्षाएं बहुत ऊंची थीं। दूसरी ओर, पाकिस्तान भारत को थकाने के लिए मोर्चे पर डटा रहा। कुछ समय बाद जमावड़ा बेमानी हो गया। अब भारत जब इसी समीकरण का दूसरा पक्ष है, वह ये सबक लेकर आगे बढ़ सकता है-

1. कभी भी पीछे मत हटो, डटे रहो। विवेक का साथ मत छोड़ो, पर्दे के पीछे खुले दिमाग से बातचीत जारी रखो। कभी भी मुशर्रफ की तरह जल्दबाज़ी में पीछे मत हटो।
2. दूसरे पक्ष के इरादों को समझने में पूरा वक़्त लो। यह फैसला करो कि क्या उपयुक्त जवाबी कार्रवाई हो सकती है। लेकिन दबाव में कुछ भी कबूल मत करो।
3. लंबे संघर्ष के लिए तैयार रहो। अगर यह लगता है कि चीन बल प्रयोग का खेल खेल रहा है और उसकी अपेक्षाएं अवास्तविक हैं, तो उसे वहां जमे रहने दो और तुम भी एलएसी के पास जमे रहो। उसे थका डालो।
4. और अंत में, याद रखो कि कोई दो घटनाएं एक समान नहीं होतीं। इसलिए धमकी अगर धक्का-मुक्की में बदलती हो तो उसके लिए भी तैयार रहो। बृजेश मिश्र के ये शब्द याद रखों- ‘बल प्रयोग की कूटनीति’ कारगर हो इसके लिए जरूरी है कि दबाव इतना असली दिखे कि कभी-कभी खुद हमें जंग का खतरा दिखने लगे। इसलिए, इस कूटनीति का जवाब देने का तरीका यही हो सकता है कि दूसरे पक्ष की ओर से युद्ध की आशंका को इतना वास्तविक मानो कि उस पर यकीन करने लगो।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)



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शेखर गुप्ता, एडिटर-इन-चीफ, ‘द प्रिन्ट’।


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ट्रम्प के फन हाउस, माफ कीजिएगा, व्हाइट हाउस के बारे में जॉन बॉल्टन की किताब में मेरी पसंदीदा कहानी वह है, जिसमें राष्ट्रपति ट्रम्प चीन के नेता से ज्यादा अमेरिकी कृषि उत्पाद खरीदने की अपील कर रहे थे, ताकि किसान ट्रम्प को वोट दें और वे फिर चुने जाएं। डोनाल्ड, गिड़गिड़ाना बंद कीजिए। शी जिनपिंग और व्लादिमिर पुतिन दोनों ने आपको वोट देने का फैसला कर लिया है। वे जानते हैं कि जबतक आप राष्ट्रपति हैं, अमेरिका में खलबली रहेगी।

शी के लिए इसका मतलब है कि अमेरिका कमजोर आर्थिक प्रतिद्वंद्वी रहेगा और पुतिन के लिए इसका मतलब है कि उनके लोगों के लिए अमेरिका कम आकर्षक लोकतांत्रिक मॉडल रहेगा। वे ये भी जानते हैं कि जब तक आप राष्ट्रपति हैं, अमेरिका कभी भी उनके खिलाफ सहयोगियों का समूह नहीं बना पाएगा, जिससे चीन अपने व्यापार और मानवाधिकारों मसलों के कारण और रूस यूक्रेन और सीरिया मामले के कारण डरता है।

ये मैं नहीं कहता। जेनेवा में चीनी व्यापार मध्यस्थ रहे झू शिआयोमिंग ने एक रिपोर्ट में कहा, ‘अगर बाइडेन जीतते हैं तो यह चीन के लिए खतरनाक होगा क्योंकि वे सहयोगियों के साथ चीन के खिलाफ काम करेंगे, जबकि ट्रम्प अमेरिका के सहयोगियों को बर्बाद कर रहे हैं।’ अगर चीन शायद ऐसा सोचता है कि उसे डरने की जरूरत नहीं है और उसे ट्रम्प की जीत से ज्यादा फायदा नहीं है, तो अमेरिका-चीन की असली कहानी बीजिंग के लिए चिंताजनक हो सकती है।

असली कहानी यह है कि 1989 के तियानानमेन स्क्वेयर के बाद से चीन की अमेरिका में अब तक की सबसे कमजोर स्थिति है। असली कहानी यह है कि इस बार अमेरिका से कुछ और अनाज और बोईंग खरीदने से बीजिंग की समस्याएं हल नहीं होंगी।

चीनियों को खुद से जो सवाल पूछना चाहिए, वह यह नहीं है कि अमेरिका का अगला राष्ट्रपति कौन होगा, बल्कि उन्हें पूछना चाहिए, ‘चीन में किसने अमेरिका को खो दिया।’ क्योंकि असली कहानी यह है कि अमेरिका और चीन तलाक की तरफ बढ़ रहे हैं। तलाक के कागजातों पर बस इतना लिखा होगा, ‘कभी न खत्म होने वाले मतभेद’।

वे 40 साल एक दंपति, दो तंत्र की तरह रहने के बाद तलाक ले रहे हैं क्योंकि चीन का प्रदर्शन बुरी तरह से महत्वाकांक्षी रहा है और अमेरिका का बुरी तरह से खराब।

अमेरिकी अब भी व्यापार करेंगे, कूटनीतिक स्तर पर जुड़ेंगे, अब भी पर्यटक आएंगे-जाएंगे, अमेरिकी बिजनेस अब भी चीन के बड़े मार्केंट में काम करना चाहेंगे। लेकिन अब से यह सब सीमा में होगा, अवसरों पर ज्यादा प्रतिबंध होंगे और रिश्ते को ज्यादा शक की निगाह से देखा जाएगा और यह डर रहेगा कि कभी भी फूट पड़ सकती है।

इसकी तुलना आखिरी 40 वर्षों से करें तो यह तलाक जैसा ही लगेगा। ग्रेटर चाइना के लिए एपीसीओ वर्ल्डवाइड के अध्यक्ष जिम मैक्ग्रेगर कहते हैं, ‘दोनों पक्ष कह रहे हैं, अब बहुत हो गया।’ खुद ट्रम्प ने हाल ही में ट्वीट किया जिसमें ‘चीन से पूरी तरह अलग होने’ के विकल्प की बात लिखी थी।

लेकिन दोनों पक्षों का बराबर दोष नहीं है। शी के युग में अमेरिका-चीन रिश्तों में गिरावट की शुरुआत 2012 में हुई। जबसे शी ने सत्ता संभाली चीन में काम कर रहे अमेरिकी पत्रकारों की पहुंच कम कर दी गई। चीन दक्षिण चीन सागर में अपनी ताकत दिखाने में आक्रामक होने लगा। वह 2025 तक मुख्य उद्योगों पर हावी होने के लिए अपने हाई-टेक स्टार्टअप्स को नियम विरुद्ध फायदे पहुंचाने लगा।

वह हॉन्गकॉन्ग की आजादी को कम करने के लिए नया राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लागू कर रहा है। वह ताइवान को और धमकाने लगा है। उसने भारत के प्रति आक्रामक रवैया अपनाया हुआ है। उसने झिंनजिआंग में उइगर मुस्लिमों की नजरबंदी बढ़ा दी है। उसने उन देशों के खिलाफ कड़ा रुख अख्तियार किया है जो वुहान से कोरोना के फैलने की जांच की मांग कर रहे हैं।

लेकिन अगर चीन अधिक महत्वाकांक्षी हुआ है, तो अमेरिका का प्रदर्शन लगातार खराब रहा है। उसने अपनी क्षमता के मुताबिक सुविधाओं, शिक्षा, वैज्ञानिक शोध, अप्रवासन पर निवेश करना कम कर दिया है। उत्पादक निवेशों को बढ़ाने और ज्यादा जोखिम को रोकने के लिए सही नियम बनाना कम कर दिया है।

अमेरिका जिस मामले में चीन से आगे था, उसका फायदा उठाना भी बंद कर दिया है। वह यह कि अमेरिका के पास ऐसे सहयोगी हैं जो उसकी तरह सोचते हैं और चीन के पास सिर्फ ग्राहक हैं, जो उसकी नाराजगी से डरते हैं।

अगर अमेरिका के सहयोगी उसके साथ आ जाएं तो मिलकर व्यापार के नए नियमों को स्वीकारने और कोविड-19 तथा अन्य कई मुद्दों के मामले में चीन को प्रभावित कर सकते हैं। लेकिन ट्रम्प ने ऐसा करने से इनकार कर हर चीज को द्विपक्षीय डील या शी के साथ लड़ाई बना दिया।

आज के रिश्तों का सार बताते हुए मैकग्रेगर कहते हैं, ‘मुझे नहीं लगता कि अब चीनी, अमेरिका को गंभीरता से लेते हैं। वे हमें खुद को नुकसान पहुंचाते देख खुश हैं। हमें अभी कुछ करना होगा।’ और अपने सहयोगियों को साथ लाना होगा। चीन सिर्फ एक चीज का सम्मान करता है: फायदा। जो आज हमारे पास बहुत कम है और चीन के पास बहुत ज्यादा।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)



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थाॅमस एल. फ्रीडमैन, तीन बार पुलित्ज़र अवॉर्ड विजेता एवं ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ में नियमित स्तंभकार


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Concerns have been expressed around the world over plans by Israel’s prime minister to annex parts of the West Bank.

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The life chances of children and young people risk being derailed over Covid-19, warn 146 charities.

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What's lockdown been like for personal trainer, a student, a rapper and a semi-pro footballer?

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Lawyer Christian Weaver posts videos online teaching the law in 60 seconds.

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A video of Kaitlyn Saunders skating on the square opposite the White House has amassed over 350,000 views.

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After a three-month closure due to coronavirus, the monument in Granada has once again opened its doors.

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When lockdown began Seaneen Molloy's panic attacks stopped, but as restrictions are eased, her anxiety is returning.

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The term BAME has been growing in prominence - but many say it does more harm than good.

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Covid-19 has hit President Trump's political base the hardest, says White House economic adviser.

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There are 450,000 civil servants working in the UK, but what do they do?

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WORLD LATEST NEWS HINDI AND ENGLISH

World Health Organization Director-General Tedros Adhanom Ghebreyesus speaks during a news conference earlier this week in Geneva.

Speaking at a briefing in Geneva, Tedros Adhanom Ghebreyesus said: "We all want this to be over. We all want to get on with our lives. But the hard reality is this is not even close to being over."

(Image credit: Fabrice Coffrini/AFP via Getty Images)



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Facebook's boss in Northern Europe says a new media literacy campaign is not about "financial considerations".

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Firms are collecting a lot more information about staff as they try to contain coronavirus risks.

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Wirecard: Financial watchdog lifts restrictions on paymentsbuisness news

Thousands of people were barred from using their cash cards because of the collapse of Wirecard.

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‘Trump political base hit hardest by coronavirus'buisness news

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Coronavirus: A visual guide to the economic impactbuisness news

Key maps and charts explain how the virus has impacted markets and businesses around the world.

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राजधानी की तिहाड़ जेल के हाई सिक्योरिटी जोन में सोमवार को दुष्कर्म के मामले में सजा काट रहे कैदी की हत्या कर दी गई। जेल अधिकारियों ने वारदात को अंजाम देने वाले कैदी और मृतक के बीत पुरानी दुश्मनी की बात बताई है।

जेल डीजी संदीप गोयल ने बताया कि मरने वाले का नाम मोहम्मद मेहताब (27) था। वह 2014 में अंबेडकर नगर के एक रेप केस में दोषी पाए जाने के बाद से जेल नंबर 8/9 में बंद था। घटना सोमवार सुबह करीब 6 बजे की है। तब हत्या के दोषी जारिक ने मेहताब पर अचानक हमला बोल दिया। उसने किसी नुकीली चीज से मेहताब की गर्दन, पेट और सीने में कई बार किए।

जारिक मर्डर केस में ही 2018 में जेल पहुंचा

इसके बाद जेल स्टाफ ने गंभीर रूप से जख्मी मेहताब को जेल में ही फर्स्ट एड दिया और तुरंत दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल पहुंचाया। लेकिन उसे बचाया नहीं जा सका। हीरा नगर थाने में जाकिर के खिलाफ हत्या का केस दर्ज हुआ है। पूरे मामले की जांच मजिस्ट्रेट की देखरेख में कराई जाएगी। जारिक हत्या के मामले में 2018 से जेल में बंद है।



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घटना सोमवार सुबह करीब 6 बजे की है। हत्या के दोषी जारिक ने जेल में साथी कैदी पर नुकीली चीज से कई बार किए। जिससे उसकी मौत हो गई।


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Monday, June 29, 2020

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ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने रंगीन कपास को विकसित करने में सफलता पाने का दावा किया है। उनका कहना है कि इस रिसर्च से अब कपड़ाें में रासायनिक रंगाें के इस्तेमाल की जरूरत नहीं पड़ेगी। कॉमनवेल्थ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च ऑर्गनाइजेशन ने कहा कि हमने कपास के आणविक रंग के जेनेटिक कोड को पाने में सफलता हासिल कर ली है।

फिलहाल हमने अलग-अलग रंगों के पौधों के टिश्यू काे तैयार कर लिया है। अब इसे खेतों में उगाया जा रहा है। अब हम ऐसे प्राकृतिक कपास की किस्म तैयार कर रहे हैं, जिसके धागों से बने कपड़ाें में सिलवट नहीं पड़ेगी और उसे स्ट्रैच करना भी आसान हाेगा। इससे सिंथेटिक कपड़ाें का उपयाेग कम करने में आसानी हाेगी।

दुनियाभर में अभी 60% से ज्यादा पॉलिएस्टर कपड़ों का निर्माण हो रहा है
वैज्ञानिकों का कहना है कि दुनियाभर में अभी 60% से ज्यादा पॉलिएस्टर कपड़ों का निर्माण हो रहा है, जो 200 सालों तक नष्ट नहीं होते। साथ ही एक किलो कपड़े को रंगने के लिए एक हजार लीटर पानी बर्बाद होता है। अब इस कपास से बने धागे को रासायनिक रंगों से रंगने की जरूरत नहीं पड़ेगी। साथ ही यह शरीर व पर्यावरण के अनुकूल होंगे।

पाैधे खुद ही अलग-अलग कलर वाले कपास पैदा करेंगे

रिसर्च टीम के प्रमुख काेलिन मैकमिलन ने कहा कि हमने कपास के आणविक जेनेटिक कलर काेड काे इस प्रकार राेपित किया, जिससे पाैधे खुद ही अलग-अलग कलर वाले कपास पैदा करेंगे। हमने तंबाकू के पाैधे में इसका प्रयाेग किया तो पत्तियाें में रंगीन धब्बे उभर आए। तब हमें यह विचार आया कि क्याें न जीन में बदलाव कर हम इसे कपास के रूप में इस्तेमाल करें।

यह रिसर्च वैश्विक स्तर पर टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज में बड़ा बदलाव ला सकती है, क्योंकि अभी हम जो फाइबर तैयार कर रहे हैं, वह बायोडिग्रेडेबल और रिन्युएबल तो है मगर रंगीन नहीं है।

भारत में भी काफी प्रयोग लेकिन सफलता भूरे व हरे रंग में ही मिल पाई
भारत में भी रंगीन कपास को लेकर काफी प्रयोग हुए। वैज्ञानिकों को भूरे और हरे रंग के अलावा अन्य कलर पाने में सफलता नहीं मिली। हालांकि मप्र, महाराष्ट्र सहित अन्य राज्यों में इस पर रिसर्च अभी जारी है। नॉर्दर्न इंडिया टेक्सटाइल रिसर्च एसोसिएशन ने रंगीन कपास के 15 पेटेंट भी हासिल किए हैं।



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कॉमनवेल्थ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च ऑर्गनाइजेशन ने कहा कि हमने कपास के आणविक रंग के जेनेटिक कोड को पाने में सफलता हासिल कर ली है।


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यूपी के देवबंद में 164 साल पुराना एशिया का सबसे बड़ा इस्लामिक शिक्षण केंद्र दारुल उलूम कुरआन, हदीस की शिक्षा और अपने फतवों के लिए पहचाना जाता है। आम तौर पर यहां की लाइब्रेरी में दाढ़ी और टोपी वाले स्टूडेंट कुरआन की आयतें, वेदों की ऋचाएं और गीता-रामायण के श्लोकों का उच्चारण करते मिल जाएंगे।

दरअसल यह संस्थान छात्रों को गीता, रामायण, वेद, बाइबिल, गुरुग्रंथ और अन्य कई धर्मों के ग्रंथों की शिक्षा भी देता है। दारुल उलूम के बारे में इस जानकारी से अधिकांश लोगों को आश्चर्य हो सकता है, लेकिन हर साल यहां से पास होकर ऐसे स्पेशल कोर्स में दाखिला लेने वाले छात्रों की तादाद करीब 300 है। इनमें 50 सीटें हिंदू धर्म के अध्ययन के लिए होती हैं।

यहां छात्र मौलवी की डिग्री के बाद स्पेशल कोर्स चुन सकते हैं

दारुल उलूम के मीडिया प्रभारी अशरफ उस्मानी बताते हैं कि यहां छात्र मौलवी की डिग्री के बाद स्पेशल कोर्स चुन सकते हैं। यहां शिक्षा के 34 विभाग हैं, 4 हजार से अधिक स्टूडेंट्स हर साल अध्ययन करते हैं। उस्मानी बताते हैं कि 24 साल पहले देवबंद की कार्यकारी समिति ने यह स्पेशल कोर्स चलाने का फैसला किया था।

इसके तहत हिंदू धर्म के अलावा ईसाई, यहूदी, सिख और पारसी सहित अन्य धर्म भी पढ़ाए जाते हैं। स्पेशल कोर्स को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि दर्शन को समझने की पर्याप्त परिपक्वता छात्रों में विकसित हो सके। ये कोर्स दो से चार साल तक के होते हैं।

विजिटिंग प्रोफेसर ने हिंदू धर्म और दर्शनशास्त्र का सिलेबस बनाया

दारुल उलूम से ही पासआउट देश के प्रमुख आलिम मौलाना अब्दुल हमीद नोमानी इस स्पेशल कोर्स के विजिटिंग प्रोफेसर हैं, जिन्होंने खुद भी प्रमुख 12 उपनिषदों, चार वेदों, गीता और रामायण का अध्ययन किया है। उन्होंने ही यहां हिंदू धर्म और दर्शनशास्त्र का सिलेबस बनाया है।

युवा मौलाना इश्तियाक कासमी ‘चतुर्वेदी’ बताते हैं कि उन्होंने मौलवियत की डिग्री के बाद चारों वेदों, गीता और अन्य हिंदू धर्मग्रंथों का अध्ययन किया। संस्कृत के विद्वान हैं इसी नाते अपने नाम के साथ ‘चतुर्वेदी’ लिखते हैं। आजकल वह गीता और कुरान के दर्शन पर अपना शोध कर रहे हैं।

वे बताते हैं कि धार्मिक पुस्तकों को पढ़ने के बाद मैंने यह सीखा कि सभी शांति, सद्भाव को लेकर अल्लाह, ईश्वर और परम ब्रह्म के संदेश देते हैं। एक अन्य छात्र मौलाना अब्दुल मलिक कासमी का कहना है,‘इन धार्मिक पुस्तकों को पढ़ना आंख खोलने वाला अनुभव है। इनके अध्ययन ने मेरा दृष्टिकोण बदल दिया और मुझे दोनों धर्मों की शिक्षाओं और दर्शन में अद्भुत समानता मिली।’

यहां 600-800 साल पुराने ग्रंथ
यहां लाइब्रेरी में दो लाख पुस्तकें और 1,500 से अधिक दुर्लभ पांडुलिपियां हैं। इसमें कई 600-800 साल पुरानी हैं। इसके इंचार्ज शफीक यहां रखे ऋग्वेद, यजुर्वेद, रामायण, तुलसीदास की रामचरितमानस, मनुस्मृति, विष्णु स्मृति का संग्रह दिखाते हैं। कहते हैं इन्हें हमने पूरी श्रद्धा के साथ रखा है।



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इंचार्ज शफीक यहां रखे ऋग्वेद, यजुर्वेद, रामायण, तुलसीदास की रामचरितमानस, मनुस्मृति, विष्णु स्मृति का संग्रह दिखाते हैं। कहते हैं इन्हें हमने पूरी श्रद्धा के साथ रखा है।


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देश में कोरोना के सबसे बड़े हॉटस्पॉट मुंबई की सीमा में आने वाले एक गांव ने इस महामारी के खिलाफ संघर्ष की मिसाल कायम की है। इसने आज तक कोरोना को गांव में प्रवेश करने नहीं दिया है, न लॉकडाउन में और न ही 8 जून को मुंबई अनलॉक होने के बाद। मुंबई मनपा का हिस्सा गोराई गांव एक छोटा टापू है, जो 5 किमी के क्षेत्र में फैला है।

यहां कोरोना से संघर्ष का क्रेडिट गांव की महिलाओं और युवाओं को जाता है। गोराई गांवठन ग्राम पंचायत एसोसिएशन के सरपंच रोसी डिसूजा बताते हैं कि एस्सल वर्ल्ड, वॉटर किंगडम और ग्लोबल विपासना पगोडा गोराई में ही हैं। लोग लॉकडाउन में भी चोरी-छुपे यहां आ-जा रहे थे।

गांव आने वाले रास्तों पर 24 घंटे निगरानी दस्ता तैनात रहने लगा

इसलिए गांव की 40-50 महिलाओं ने गांव आने वाले रास्तों पर बैरिकेटिंग कर दी और 24 घंटे निगरानी दस्ता तैनात रहने लगा। इधर गांव के युवाओं ने 5-5 लोगों के ग्रुप में तीन-तीन घंटे की शिफ्ट में निगरानी दस्तों का गठन किया। लेकिन, जब अनलॉक की घोषणा हुई तो गांव वालों को चिंता होने लगी।

बाहर आने-जाने वालों के साथसख्त सोशल डिस्टेंसिंग का पालन

फिर भी गांव वालों ने 16 जून तक बैरिकेडिंग और निगरानी जारी रखी। अब बैरिकेडिंग तो हटा ली गई है, लेकिन सख्त सोशल डिस्टेंसिंग का पालन आज भी बाहर आने-जाने वालों के साथ किया जा रहा है। नतीजा यह हुआ है कि आज तक गांव में एक भी कोराेना पॉजिटिव मामला नहीं आया है।

15 हजार के आबादी वाला गोराई गांव 90% कैथोलिक बहुल है,जो खेती करते हैं। रविवार के दिन गोराई गांव में बड़ी संख्या में लोग मछली खरीदने आते हैं।



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गांव की 40-50 महिलाओं ने गांव आने वाले रास्तों पर बैरिकेटिंग कर दी और 24 घंटे निगरानी दस्ता तैनात रहने लगा। कोरोना से संघर्ष का श्रेय इन्हें ही जाता है।


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अगर आप सड़क मार्ग से मिजोरम जाएं तो हाईवे पर आपको कई दुकानें ऐसी मिलेंगी, जिनमेंसामान के बदले रुपए लेने वाला कोई नहीं मिलेगा। न ही इन दुकानों में ग्राहकों पर नजर रखने वाले सीसीटीवी कैमरे हैं। फिर भी सब्जियां, फल, जूस और राशन की ये दुकानें बीते करीब 30 सालों से चल रही हैं।

इन दुकानों को मिजोरम की स्थानीय भाषा में ‘नगाह लोह द्वार’ कहा जाता है, जिसका मतलब है बिना दुकानदार की दुकानें। इन दुकानों में सामान की रेटलिस्ट लगी होती है। सामान लेने के बाद ग्राहक को दुकान में ही रखे बॉक्स में कीमत के पैसे डालने होते हैं।

ज्यादातर ग्राहक पर्यटक या हाईवे पर चलने वाले ट्रक ड्राइवर होते हैं

मिजोरम में 1990 से इन दुकानों का चलन बढ़ा है। अधिकतर दुकानें राजधानी आइजोल से लुंगलेई हाईवे के बीच 60 किमी के दायरे में बक्तवांग, तलुंगवेल, थिंगसुल्थलिया गांवों के बीच हैं। इन दुकानों के ज्यादातर ग्राहक पर्यटक या हाईवे पर चलने वाले ट्रक ड्राइवर होते हैं।

लॉकडाउन के चलते पर्यटकों के घटने का असर इन पर भी पड़ा है

सामान्य दिनों में दुकानों से अच्छी आय हो जाती थी, लेकिन लॉकडाउन के चलते पर्यटकों के घटने का असर इन पर भी पड़ा है। ऐसी ही एक दुकान चलाने वाले ललरिथपुइया गांव के किसान बताते हैं कि रोज 500 से 1000 रुपए की आय होती थी, लेकिन अब कमाई बहुत कम हो गई।

टूरिस्ट आने बंद हैं और ट्रक भी कम निकल रहे हैं। उम्मीद है कुछ दिनों में सब पहले जैसा हो जाए।’ इस इलाके में किसान परिवार के सभी सदस्य खेतों में काम करते हैं। दुकान पर लगातार कोई मौजूद रहे, यह संभव नहीं होता, इसलिए बिना दुकानदारों की व्यवस्था बन गई। सारी दुकानें विश्वास पर चलती हैं, कभी ऐसा नहीं हुआ कि कोई पैसे दिए बिना सामान ले गया हो।

ग्राहक की सहूलियत के लिए गुल्लक में खुले पैसे भी रखते हैं दुकानदार
विश्वास की ये दुकानें गांव के किसान लगाते हैं। किसान रोज सुबह खेतों से ताजी सब्जियां, फूल, फ्रूट जूस, ताजा पानी, सूखी छोटी मछलियां और जरूरत के दूसरे सामान जुटाकर दुकानों पर रखते हैं। बांस की बल्लियों से बनी इन साधारण सी दुकानों पर पवीशा बॉन यानी पैसे रखने का डिब्बा या बॉक्स होता हैं। ग्राहक की सहूलियत के लिए गुल्लक में खुल्ले पैसे भी रखते हैंं। रोजाना शाम को खेत से लौटते वक्त किसान बचा सामान छोड़कर पैसे निकाल लेते हैं।



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इन दुकानों को मिजोरम की स्थानीय भाषा में ‘नगाह लोह द्वार’ कहा जाता है, जिसका मतलब है बिना दुकानदार की दुकानें।


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Lazarus Chakwera became Malawi's new president Sunday after months of street protests and a decision by the Constitutional Court for a new election.

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Leading doctors call for regular check ups of those who have been treated in hospital.

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The riot control agent has been banned in war for 100 years but remains a vital tool for police.

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The state governor says 5,000 people are being hospitalised daily as Texans are urged to wear masks.

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A report by the Green Alliance think tank argues that extra cash is required for clean transport.

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It's been out of the headlines for the past few months, but Brexit is back on the political menu

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Investigative reporter Anas Aremeyaw Anas exposes a Covid-19 scam said to be worth thousands of dollars.

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The Bikeability Trust's Paul Robison breaks down how to start cycling with confidence.

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The cancellation of events like weddings and Wimbledon has not stopped strawberry sales soaring.

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When Mohammed Azeem arrived in hospital his blood oxygen levels were "not compatible with life" as one doctor put it.

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Kids can get into trouble if there’s nothing to do - could a new £6.6m centre be about to change that?

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The Black Lives Matter protests that followed George Floyd's killing led one of Patrick George's white friends to ask him a question.

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Coronavirus has forced people to get creative with the way they work, with some surprising jobs going online.

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How Michelle Doherty overcame her skin problems and launched skincare business Alpha-H.

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She's sung on dozens of chart hits but after eight years, people are only just starting to recognise her name.

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The prime minister has made four claims on poverty, do the figures support them?

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Extra £14bn needed a year for climate, report saysbuisness news

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Coronavirus: Can you really do these jobs from home?buisness news

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Who needs Wimbledon? Strawberry sales soarbuisness news

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Sunday, June 28, 2020

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यूरोप ने कोरोनामहामारी से उबरने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। सभी देश वायरस से लोगों की सुरक्षा और ध्वस्त अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए बीच का रास्ता निकाल रहे हैं। टूरिज्म से अधिक जोखिम किसी अन्य सेक्टर के लिए नहीं है। आखिरकार वुहान, चीन के बाजारों से निकलकर वायरस इटली, जर्मनी सहित अन्य देशों में फैला है।

टूरिज्म के जरूरी हिस्से जैसे कि विमान, क्रूज शिप, होटल, रेस्त्रां,म्यूजियम और उत्सवों की भीड़ ही वायरस के प्रमुख वाहक हो सकते हैं। फिर भी, यूरोप की अर्थव्यवस्था के लिए टूरिज्म अहम है।

यूरोपियन यूनियन के 27 देशों में जीडीपी का 11% हिस्सा टूरिज्म से आता है
यूरोपीय यूनियन के 27 देशों में जीडीपी का 11% टूरिज्म से आता है। इसकी तुलना में अमेरिका में यह 2.6 % है। पेरिस में टूरिज्म सबसे बड़ी इंडस्ट्री है। हर साल पेरिस आने वाले तीन करोड़ 80 लाख लोगों के कारण 12% स्थानीय रहवासियों को रोजगार मिलता है।

डिप्टी मेयर जीन फ्रांकोइस मार्टिन्स कहती हैं, संकट के बाद लाखों टूरिस्ट पेरिस नहीं आ सके हैं। एयरलाइंस, फूड चेन से लेकर हर कहीं दिक्कत महसूस की जा रही है। वर्ल्ड ट्रैवल, टूरिज्म कौंसिल के अनुसार 2020 में यूरोप में टूरिज्म से संबंधित एक करोड़ 80 लाख जॉब और जीडीपी में 75.60 लाख करोड़ रुपए का नुकसान होगा।

कई देशों में टूरिज्म की हलचल तेज
अधिकतर यूरोपीय देशों में वायरस का प्रकोप शिखर तक पहुंच चुका है। इसलिए गर्मियों को ध्यान में रखकर कई देशों में टूरिज्म की हलचल शुरू हो गई है। फ्रांस नेशनल साइंटिफिक रिसर्च सेंटर के अर्थशास्त्री बेरी प्रादेलस्की कहते हैं, जहां वायरस नियंत्रित हैं, उस क्षेत्र को ग्रीन जोन बनाकर गतिविधियां चलाई जा रही हैं। लातविया, लिथुआनिया, एस्तोनिया ने एक-दूसरे देशों के लोगों को आने की अनुमति दे दी है। डेनमार्क ने जर्मनी, नार्वे, आइसलैंड के लिए दरवाजे खोले हैं।

वैसे, तालमेल पूरी तरह नहीं बना है। आस्ट्रिया ने स्पेन, पुर्तगाल, स्वीडन, ब्रिटेन ग्रीस के लोगों पर रोक लगा रखी है। 18 जून को अपनी सीमाएं खोलने का एलान करने वाले डेनमार्क ने स्वीडन के लोगों पर बंदिश लगा दी है। स्वीडन उन कुछ यूरोपीय देशों में शामिल है, जहां नए मामले बढ़ रहे हैं। कई देशों ने घर में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए सुविधाएं दी हैं। इटली ने 34 लाख सालाना से कम कमाने वाले पर्यटकों को देश में यात्रा के लिए 42 हजार रुपए के वाउचर दिए हैं। स्पेन ने बहुत खर्चीला विज्ञापन अभियान छेड़ा है। इसमें देश की यात्रा के फायदे गिनाए गए हैं।

जर्मन टूरिस्ट की स्पेन यात्रा पर टिकी उम्मीदें
15 जून को एक पायलट प्रोग्राम के अंतर्गत जर्मनी के 400 पर्यटक स्पेन के द्वीप मलोरका पहुंचे। टूर कंपनी टीयूआई और बालिएरिक द्वीपों की सरकार के सहयोग से इसका आयोजन किया गया। टूर के टिकट कुछ ही घंटों में बिक गए थे। इन द्वीपों में संपूर्ण लॉकडाउन के कारण यहां बार्सीलोना, मैड्रिड जैसी तबाही नहीं हुई है।

दो विमानों से मलोरका पहुंचे यात्रियों को दो होटलों में एकदम अलग हिस्से में ठहराया गया था। एक पर्यटक फिल पेलजन ने बताया कि वह यहां सुरक्षित महसूस कर रहा है। होटल ने सभी जरूरी सावधानियां बरती हैं। इस प्रोग्राम को लेकर यूरोप में उत्सुकता और बेचैनी का माहौल था।



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अधिकतर यूरोपीय देशों में वायरस का प्रकोप  शिखर तक पहुंच चुका है। इसलिए गर्मियों को ध्यान में रखकर कई देशों में टूरिज्म की हलचल शुरू हो गई है।


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Latest hindi and english news

खूबसूरत चेहरा किसकी ख्वाहिश नहीं होती...हर किसी की तो होती है। लेकिन, कोरोना ने इस ख्वाहिश पर पहरेदार बिठा रखा है और जिम्मेदारी दे रखी है मास्क को। मास्क भी इसे निभाने पर आमादा है। लेकिन, इसमें जाने-अनजाने उससे थोड़ी सख्ती भी हो जा रही है। चेहरा मासूम और मुलायम जो है।

मास्क चेहरों पर अपने निशां छोड़ने लगा है। किसी को रगड़का दाग, तो कहीं कटने और फटने के निशान। मुहांसे और फुंसी के मामले भी बढ़ने लगे हैं। इन सबको कहने के लिए एक नया शब्द भी आ धमका है- ‘मास्कने’।

इस महामारी ने कई शब्द गढ़े हैं ओर उन्हें मशहूर किया है, मसलन- क्वारैंटाइन, सोशल डिस्टेंसिंग, हॉट स्पॉट, सोशल बबल और भी कई। मास्कने भी इन्हीं की बिरादरी का है। मायने है- मास्क पहनने से होने वाले मुंहासे, कट के निशान, दाग, जलन...।

इस मुश्किल वक्त में कोई घर से बाहर बिना मास्क के आखिर निकल भी कैसे सकता है। फ्रंटलाइन वर्कर्स, हेल्थ केयर के लोग और दफ्तर जाने वालों के लिए तो ये बेहद जरूरी हो चला है।

न्यूयॉर्क की क्लीनिकल डर्मैटोलॉजिस्ट, डॉक्टर ऑफ मेडिसिन, सेलेब्स स्किन और वेलनेस एक्सपर्ट डॉ. किरन सेठी कहती हैं कि मेरे पास भी मास्कने के केस आ रहे हैं, पर बहुत ज्यादा नहीं। हालांकि, इसकी वजह यह भी हो सकती है कि मैं अभी सिर्फ वर्चुअल कंसल्टेंसी कर रही हूं और ज्यादातर लोग घर में रह रहे हैं।

डाॅ. किरन मास्कने और मुंहासे से बचने के लिए फेसवॉस चेंज करने की सलाह देती हैं। कहती हैं कि ऐसे फेसवॉश यूज करें, जिसमें सेल्सलिक एसिड हो। इससे स्किन में ऑयल कम होता है। कम लेयर के मास्क पहनें, पसीना हो तो उसे साफ करें। पेट्रोलियम जेली और वैसलीन लगाने से भी चेहरे पर फ्रिक्शन नहीं आते हैं।

एक्सपर्ट्स बता रहे-क्या करें और क्या न करें?क्या सावधानी रखें?कैसे इलाज कराएं?

अपने खूबसूरत चेहरे काकैसे ध्यान रखें?ब्यूटी प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करें या न करें? मास्कने की वजह क्या है?

  • मास्क पहनना तो जरूरी है-
डर्मैटोलॉजिस्ट डॉक्टर विवेक कुमार देय कहते हैं कि अभी तो मास्क को न पहनने के सलाह नहीं दे सकते हैं, क्योंकि मुंहासों से उतनी दिक्कत नहीं है, जितनी कोरोना से है। इसलिए मास्क पहनना तो बेहद जरूरी है। हां, इसे पहनने के दौरान कुछ सावधानियां जरूरी हैं। मास्क पहनने के दौरान मेकअप से भी बचना चाहिए।
  • सेंसिटिव स्किन वालों को ज्यादा रिस्क-
डॉ. सेठी के मुताबिक यह दिक्कत उन लोगों को ज्यादा हो रही है, जो मास्क पहनकर बाहर निकल रहे हैं और लगातार काम कर रहे हैं। खासकर, फ्रंटलाइन वर्कर्स और हेल्थ वर्कर्स के साथ मास्कने या मुंहासों की समस्या ज्यादा है। ऐसे लोगों को भी यह दिक्कतें आ रही हैं, जिनकी स्किन बहुत ज्यादा सेंसिटिव है।
डाॅ. सेठी कहती हैं कि ज्यादा मेकअप करने से स्किन के पोर बंद हो जाते हैं, उसके बाद यदि आप मास्क पहनते हैं तो साइडइफ्केट होने का खतरा बढ़ जाता है। इससे चेहरे पर दाने भी निकल सकते हैं।
  • बार-बार फेस कोन छूएं-
डॉक्टर विवेक मास्कने से परेशान लोगों को बार-बार फेस नहीं छूने की सलाह देते हैं। कहते हैं कि ऐसे लोगों को एंटीबायोटिक जेल और क्रीम लगानी चाहिए। दरअसल, लगातार फेस को कवर करने और बंद रखने को ऑक्ल्यूजन भी कहते हैं। इससे हवा अंदर नहीं जाती है और पसीना होता है। फिर चेहरे पर दाने, कील-मुंहासे और रगड़ के निशान आते हैं। इसे आप मास्कने की जगह चुन्नीकने भी बोल सकते हैं, क्योंकि लंबे वक्त तक चुन्नी से फेस कवर करने वाली कुछ महिलाओं को भी ऐसी दिक्कतें होती हैं।
  • हेल्थ केयर वर्कर्स को ज्यादा खतरा-
मास्कने का सबसे ज्यादा खतरा हेल्थ केयर वर्कर्स और दूसरे फ्रंटलाइन वर्कर्स को है। क्योंकि, ये सभी टाइट मास्क को लंबे वक्त तक पहन रहे हैं। जर्नल ऑफ अमेरिकन एकेडमी ऑफ डर्मैटोलॉजी में छपे एक रिसर्च के मुताबिक, चीन के हुबेई में करीब 83 फीसदी स्वास्थ्य कर्मी चेहरे पर स्किन प्रॉब्लम से जूझ रहे हैं। इसके अलावा आम लोगों में भी मुंहासों की समस्या में इजाफा हुआ है।


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Coronavirus; How to Prevent Acne and Pimples from Face Masks


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Boris Johnson is to set out his plans for a post-Covid economic recovery in a speech next week.

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Florida and Texas reverse moves to reopen business as total cases across the US surpass 2.5 million.

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The president's campaign could face legal action if it ignores "cease and desist directives".

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Prof Devi Sridhar says the country could eliminate the coronavirus if the decline in new cases continues.

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Lazarus Chakwera wins nearly 60% of the vote to defeat the incumbent and become Malawi's president.

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If President Andrzej Duda loses, the opposition could force a change in Polish politics.

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An Italian student in Ohio watched her country reel from the coronavirus pandemic.

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Jumping on a plane looks and feels different to how it did at the start of 2020.

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Young gay black people from the West Midlands share their experience of racism on dating apps.

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Circus performer Erin Ball thought her career was over when she lost her feet in an accident in 2014.

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A selection of pictures from our readers on the theme of 'walking'.

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Funeral directors, celebrants and mourners discuss how funerals under lockdown have "felt incomplete".

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José Gregorio Márquez was ashamed of the place he grew up, but he came to love it before leaving it forever.

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The returning rock star reflects on underground sounds, happy times, and "shocking" race issues.

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Campaigners say routes need to be made safer to keep new cyclists on the roads as lockdown is eased.

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During the coronavirus lockdown our eating habits have changed, so who has been benefiting from it?

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Stephen Cameron spent 68 days on a ventilator but beat the odds to survive coronavirus.

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Opposition alliance leader defeats incumbent Peter Mutharika to win presidency in landmark vote rerun.

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काेराेनाकाल में शुरू हुआ‘वर्क फ्राॅम हाेम’ का न्यू नाॅर्मल कर्मचारियाें के लिए चंद माह में ही परेशानी का सबब साबित हाेने लगा है। काम के तय घंटे न हाेना, लगातार वीडियाे मीटिंग औरलाॅकडाउन के चलते ‘बेहतर विकल्पों’ की कमी से कर्मचारी तनाव महसूस करने लगे हैं। उनकी पर्सनल औरऑफिसलाइफ में काेई अंतर नहीं रह गया है।

यही कारण है कि कर्मचारी ऑफिसके माहाैल में लाैटना चाहते हैं। अमेरिकी रियल एस्टेट फर्म जेएलएल के हाेम एक्सपीरियंस सर्वे में 82% लाेगों ने ऑफिसलाैटने की उत्सुकता दिखाई है। वे चाहते हैं कि उनकी दिनचर्याकाेविड-19 महामारी के पहले जैसी हाे जाए। सिर्फ18% लाेग ही ऐसे थे, जाे घर से काम करना चाहते थे।

सर्वे में दुनिया के 54% कर्मचारियोंने माना कि डिजिटल चर्चा में वह मजा नहीं, जाे ऑफिस में आमने-सामने होती है। वहीं 41% भारतीय कर्मचारियाें ने माना कि घर से काम करने में पेशेवर माहाैल नहीं मिलता है। ऑनलाइनवेब एप्लीकेशन कंपनी जाेहाे के सीईओश्रीधर वेंबु कहते हैं, ‘मेलजाेल न हाे पाना बड़ी समस्या है। आमने-सामने के विचार-विमर्श का स्थान काेई एप नहीं ले सकता।’


कहीं ‘नाे मीटिंग डे’ लागू, कोई कुर्सी-टेबल दे रही
कर्मचारियाें की नई समस्याओंकाे कई कंपनियाें ने समझा है। इसी के चलते गूगल ने 22 मई काे छुट्टी घाेषित की थी। वहीं गेमिंग यूनिकाॅर्न कंपनी ड्रीमस्पाेर्ट्स ने गुरुवार काे ‘नाे मीटिंग डे’ घाेषित किया है। इसने लंच ब्रेक भी 60 से बढ़ाकर 90 मिनट का कियाहै। वह रेड जाेन में रह रहे कर्मचारियाें को किराना पहुंचा रही है।

एक कंपनी कर्मचारियाें को सब्सिडी पर आरामदायकटेबल-कुर्सी उपलब्ध करवा रही है। बेंगलुरू के एचआरस्टार्टअप स्प्रिंगवर्क्स ने ऑफिसकी खाली चेयर कर्मचारियाें के घर भिजवादीं।



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Employee bored with 'work from home', ending personal life; 82% want to get in office office


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'Mitron' app kya hai/what is 'mitron' app

                    मितरोन एप क्या है Mitron एक सोशल मीडिया एप्लिकेशन है।mitron ऐप को भारत में एक आईआईटी के छात्र ने बनाया है। उसका नाम श...